Monday, March 26, 2012

Izhaar

कह ना पाता अपने दिल की बात,
जाने किससे में डरता था
सोचता, आज़माता कई तरक़ीबें,
हर लम्हा एक इंतेहाँ सा लगता था,
क्या ज़रूरी है दिल की बात बयान करना?
क्या ज़रूरी है लफ़्ज़ों में इन्हे इज़हार करना?
इन खामोशियों में भी तो सच्चाई है,
जो मेरी आँखों ने जाने कितनी बार दोहराई है,
जिन्हे बतलता में भी नही,
और समझते तुम भी नही

Saturday, March 3, 2012

Ehsaas

आँखों में बसा खाव्ब था जो
ज़ुबान पे ठहरा लफ्ज़ था जो
दिल में छुपा प्यार था जो
मेरी आरज़ू का बयान था जो

आज मेरे करीब, 
मेरे पास आया है
हर सांस हर धड़कन में,
एक एहसास बनकर समाया है

रोशनी कहूँ उसे
या खवहीसों का टुकड़ा
आसमान में बिखरी धूप की तरह
मेरे रग रग में समाया है

खुद के होने पर 
यकीन है आज मुझको
नयी सुबह, नये रास्तों की तरह
ज़िंदगी का ये पल 
एक एहसास बनकर
मेरे ज़हेन में समाया है