चांदनी थी, रौशनी थी,
इस क्रोधित जड़ैया में लेकिन, मखमली घाम न था
स्वाद था, ज़ायका था
इस परोसी थाली में लेकिन, एक चुटकी खारा न था
साँसें चल रहीं थी बरसों से,
इस भीनी खुसबू का लेकिन, कोई इशारा न था
आँखों के परदे तो थे कई,
यूँ पलके छुपाने का लेकिन, कोई इरादा न था
आवाज़ थी, पुकार थी
यूँ बैठ जाये भीतर लेकिन, कोई अनुवाद न था
अकेला था, कोई दूसरा न था
इतना तनहा होगा मिलना लेकिन, ये एहसास न था
तलाश थी, जुस्तजू थी
अंत ही माटी हो लेकिन, ये बर्दाश्त न था
इस क्रोधित जड़ैया में लेकिन, मखमली घाम न था
स्वाद था, ज़ायका था
इस परोसी थाली में लेकिन, एक चुटकी खारा न था
साँसें चल रहीं थी बरसों से,
इस भीनी खुसबू का लेकिन, कोई इशारा न था
आँखों के परदे तो थे कई,
यूँ पलके छुपाने का लेकिन, कोई इरादा न था
आवाज़ थी, पुकार थी
यूँ बैठ जाये भीतर लेकिन, कोई अनुवाद न था
अकेला था, कोई दूसरा न था
इतना तनहा होगा मिलना लेकिन, ये एहसास न था
तलाश थी, जुस्तजू थी
अंत ही माटी हो लेकिन, ये बर्दाश्त न था