Elements!
Memories and poetries . . .
Monday, April 21, 2014
Hope
टिक टिक कर
निगलती जा रही ज़िन्गदी मुझे
जैसे प्यासी घूंट
निगलता है मुसाफिर कोई
इल्तेजा है इतनी
रात के उन अँधेरे सन्नाटों में
एक-आधा चाँद मेरा भी झलक जाये
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