आज फिर ये साँझ
एक चादर ओढ़ आयी
जिसकी हलकी छाव में
छुप गए हम तुम
आसमा देखो
ललचा रहा जैसे
वक़्त देखो
इतरा रहा जैसे
चुपके से
हो गयी रात
जिसका बहाना लिए
चले गए तुम
और छोड़ गए हमें
तनहा अकेले
उस चाँद की
रौशनी में
जो खुद तुमसे
शीतलता चुराता है
एक चादर ओढ़ आयी
जिसकी हलकी छाव में
छुप गए हम तुम
आसमा देखो
ललचा रहा जैसे
वक़्त देखो
इतरा रहा जैसे
चुपके से
हो गयी रात
जिसका बहाना लिए
चले गए तुम
और छोड़ गए हमें
तनहा अकेले
उस चाँद की
रौशनी में
जो खुद तुमसे
शीतलता चुराता है
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