Sunday, April 15, 2012

Raaz

क्या राज़ है तेरे चेहरे का
अंजान होकर भी अंजाना ना लगे
कश्ती को किनारा मिला हो जैसे
मुसाफिरों का ठिकाना सा लगे

आँखों में मासूमियत, सादगी हो जैसे
एक खाव्ब पहचाना सा लगे
राज़ हज़ारों छुपे हो जिनमे
हर राज़ एक आईना सा लगे

होटो पर कशिश, एक चाह हो जैसे
तपती धूप में, बारिश की बूँद हो जैसे
जिनके स्पर्श से कोयला भी चाँद सा लगे
कर दे अमर जिसे छू ले तू
असर ऐसा, कोई जादू टोना सा लगे

रोक लिया खुदको ये सोचकर
दूर ना चले जाओ तुम
कहीं ये इज़हार दीवानापन सा ना लगे
एक गीली तस्वीर जो तुम
जिसकी एक झलक भर में
हर रंग सतरंगी सा लगे

राज़ जैसे राज़ ना हो कोई
तेरा चेहरा मुझे
बस एक सुलझा हुआ जवाब सा लगे