Wednesday, November 7, 2012

Talaash

तलाश है, एक ऐसी सुबह की,
जब आसमा में बिखरें कुछ रंग,
हलके नीले, हलके गुलाबी,
जैसे हांथो से किसी चित्रकार ने,
रात की चादर को, बड़े ही इम्तेनान से सजाया हो,
और जता रहा हो के,
धुप की पहली किरण, तेरी आँखों से ऐसे झलके,
जैसे ये सुबह एक नया पैगाम लायी हो,
और एहसास जगा दे ज़हन में,
जिंगदी वो नहीं, जो थी,
वो नहीं, जो होगी,
जिंदगी तो है अभी, यहीं
तू तालाश तो कर . . .
एक ऐसी सुबह की . . .