Friday, September 14, 2012

Tum

झील का किनारा हो तुम
आसरा हो, मन की कश्तियों का
समंदर हो, परछाई दिखती है जिसमें 
बिखरते ख्यालों की
जिनसे, फुरसत मिलते ही
बातें किया करता हूँ में
कविता हो, एक जवाब हो, 
मेरी खाव्हिसों की, पहचान हो
तस्वीर की तरह, मेरे अन्दर बसी हो
चेहरा दिखता नहीं तुम्हारा,
बस एक रौशनी है, एहसास है
जिसे बंद आँखों से महसूस कर 
मेरे रूह को
सुकून सा मिलता है . . .

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