Sunday, January 5, 2014

Har Ki Dun (Valley of the Gods)

कविताओ से पूरी ना होगी
तस्वीरो में क़ैद ना होगी
ये हिमालय की गोद से निकली
हर की दुन घाटी
यहाँ मिलते है ख्वाब अधूरे
अकेलेपन में लिपटी
इन वादियों को क्या महसूस होता होगा?
मेरी सांसो का कंपन?
जो पहले कभी ना था!
या मेरी धड़कने?
जो मानो आज धड़कना सीखी हो!
कदम जो ये थकते नही
और क़ैद करने इन नज़ारों को
ये आँखें झपकती नही
दिशायें ये रुकती नही
बस चली जाती हैं दूर कहीं
और इनसे मिलने की ख्वाहिश में
चला चलता हूँ में
गुनगुनाते हुए, तोड़ा मुस्कुराते हुए
जीने का सबब जैसे मिला हो
जन्नत का जैसे एक पल मिला हो
ये हिमालय की गोद से निकली
हर की दुन घाटी
यहाँ मिलते है ख्वाब अधूरे

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