Monday, May 14, 2012

Sapna


सांझ ढलते ही आती महक तुम्हारी
कभी रात के सन्नाटे में मुस्कुराती तुम

गुल्मोहर की तरह रंग बदलती 
दर्द, प्यार, तो कभी एहसास हो तुम

ख़याल हो तुम मेरी हक़ीक़त का
कभी उन ख़यालों में उलझा एक ख्वाब हो तुम

तमन्नाओं की गोद में जो खेलती 
कभी खुद ही में छुपा एक राज़ हो तुम

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