सांझ ढलते ही आती महक तुम्हारी
कभी रात के सन्नाटे में मुस्कुराती तुम
गुल्मोहर की तरह रंग बदलती
दर्द, प्यार, तो कभी एहसास हो तुम
ख़याल हो तुम मेरी हक़ीक़त का
कभी उन ख़यालों में उलझा एक ख्वाब हो तुम
तमन्नाओं की गोद में जो खेलती
कभी खुद ही में छुपा एक राज़ हो तुम
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