Friday, August 30, 2013

Woh Raat

वो रात
भी क्या रात थी
जब धुंडने निकले
आँखे मूँद कर
चुपकर
जिसका ठिकाना न था
बस एक ख्याल था
ज़ेहन में
कोई पैमाना न था
यूँ तोह
नाज़ुक सा बोझ था
सच पूछो
कच्चा हमका होश था
धड़कने जवाब देने लगीं
एक हलचल सी होने लगी
हिमात करके भी
चुप रह न सके
कहना था जो
कह ही गए
लेकिन वो रात
अधुरा एहसास थी
जैसे, सामने आ जाये वो
जिसकी तलाश थी
और कह न सके
दिल में दबी जो बात थी  

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