Ek Shaam
एक शाम
गुज़रती नहीं
थमती भी नहीं
इशारा करते करते
फुरसत से आहें भरके
चुनिन्दा ख्यालों को
इन मायूस आँखों से
आज़माती हुई
चली ये
अपने ही धुन में
न जाने कहाँ
प्यार से
बड़े आराम से
एक अधूरी दास्ताँ
अपने सांथ लिये
होले से कहते हुए . . .
हम फिर मिलेंगे
ए वक्त के मुसाफिर
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