ये कविता
तेरे आँसुओं के लिये
जो तेरी मायूस आँखों से
टपकते है
मौम की तरहा
जिन्हे देख कर
जी करता है
फूक कर अँधियारा कर दूं
और तेरी मासूमियत को पिघलने ना दूं
तेरे आँसुओं के लिये
जो तेरी मायूस आँखों से
टपकते है
मौम की तरहा
जिन्हे देख कर
जी करता है
फूक कर अँधियारा कर दूं
और तेरी मासूमियत को पिघलने ना दूं
No comments:
Post a Comment