Monday, April 21, 2014

Hope

टिक टिक कर 
निगलती जा रही ज़िन्गदी मुझे 
जैसे प्यासी घूंट  
निगलता है मुसाफिर कोई 
इल्तेजा है इतनी 
रात के उन अँधेरे सन्नाटों में 
एक-आधा चाँद मेरा भी झलक जाये 

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